संदेश

2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हरि जी म्हारी सुणज्यो बैग पुकार (भजन) - HARI JI MHARI SUNJYO BAIG PUKAR

  (29) भजन हरि जी म्हारी सुणज्यो बैग पुकार । जुगां–जुगां से आप प्रगटया , जग के सिरजनहार ।।टेर।। भक्त उबारण ताँई लीना , थे नृसिंह अवतार । खंभ फाड़ प्रहलाद उबारया , हिरणाकुश ने मार ।।1।। हरिश्चन्द्र सतवादी तारया , लिया वचन ने धार । बेच दिया अपना सुत नारी , बिक गया बिच बाजार ।।2।। मीरां बाई को जहर पचाया , हाँथा लिया उबार । नानी बाई को भात भरया थे , जाण्यो सब संसार ।।3।। मैं भी आज शरण में आयो , लियो चरण आधार । ‘ अशोकराम ’  की अरजी सुणज्यो , देवो दुखड़ा टार ।।4।।

गुरू दाता म्हाने कष्ट सतावे भारी (भजन) - GURU DAATA MHANE KASHT SATAVE BHARI

  (4)  भजन गुरू दाता म्हाने कष्ट सतावे भारी । आप वैद्य और मैं हूँ रोगी , सहाय करो जी हमारी ।।टेर।। तन का रोग कबहुँ नही मिटता , देखो नबज हमारी । मन का रोग बड़ा है भारी , सुरति मेरी बिसारी ।।1।। लाय संजीवनी औषध देवो , सुधि लेवो जी हमारी । ज्ञान कुण्डी में घोट घोट कर , दयो मुखड़ा में डारी ।।2।। क्रिया कर्म की औषध लेतां , बढ़गी घणी बीमारी । मुक्ति रूपी जड़ी देवज्यो , तन मन होत सुखारी ।।3।। “ ज्ञानस्वरूपजी ”  सतगुरू दाता , सुणल्यो अरज हमारी । “ अशोकराम ”  का भव दुःख मेटो , औषध का भण्डारी ।।4।।

गुरां सा थाने सुमरूं बारम्बार (भजन) - GURAN SA THANE SUMRU BARMBAR

  (3)  भजन गुरां सा थाने सुमरूं बारम्बार । हिवड़ा माँही उठे हिलोला , बाज रही झणकार ।।टेर।। लगन लगी है उर में भारी , वांको अन्त न पार । दर्शन देकर धीर बन्धावो , थे ही अधम उधार ।।1।। दिन नही रैन चैन नहीं आवे , बेगा सुणो पुकार । व्याकुल हो गयो जग में दाता , दुःखी हुयो घबरार ।।2।। कृपा करो निज दास जाण के , जाँऊ किसके द्वार । आप दया के सागर स्वामी , अरज करूं दुखियार ।।3।। “ ज्ञानस्वरूप ”  गुरूजी म्हारी , बैगा सुणो पुकार । “ अशोकराम ”  चरणा को चाकर , भव से लेवो तार ।।4।।

कुण्डलियाँ (कृपा करो गुरूदेव जी) - KRIPA KARO GURUDEV JI

  कुण्डलियाँ कृपा करो गुरूदेव जी , अपणो सेवक जाण । आप बिना संसार में , मेटे कौण अज्ञान ।। मेटे कौण अज्ञान , भूल मेरी कौण हटावे । आप बिना सूतां जीवां नें , दूजो कौण जगावे ।। ‘ अशोकराम ’  भूंलू नहीं , जब लग घट में प्राण । कृपा करो गुरूदेव जी , अपणो सेवक जाण ।।

गुरू दाता म्हाँपे साँची दया विचारो (भजन) - GURU DAATA MHAPE SANCHI DAYA VICHARO

  (2)  भजन गुरू दाता म्हाँपे साँची दया विचारो । दीन बन्धु है नाम आपको , भव जल आय उबारो ।।टेर।। भक्ति न जाणू , भजन न जाणू , शरणू लियो तिहारो । आप बिना दूजो नहीं दर्शे , जग में तारण हारो ।।1।। दास जाण निज दया करो जी , बेगा जनम सुधारो । झूंठा जग में जतन कर हारयो , थांको लियो सहारो ।।2।। सत , चित्त , आनन्द रूप कहाओ , कर देवो उपकारो । अब तो महर करोजी दाता , बीत्यो जाई जमारो ।।3।। “ ज्ञानस्वरूपजी ”  सतगुरू म्हाँने , थांको ही आधारो । “ अशोकराम ”  शरणों लियो , सहजां देवो किनारो ।।4।।

कुण्डलियाँ (दास आपके नाम का) - DAAS AAPKE NAAM KA

कुण्डलियाँ दास आपके नाम का , नमन करूं हर बार । दर्शन देई उबारज्यो , कीज्यो भव जल पार ।। कीज्यो भव जल पार , पलक घड़ी बिसरूं नांही । घट अंधियारा मेटज्यो , बैठो हिरदा मांही ।। ‘ अशोकराम ’  की विनति , सुणल्यो सिरजनहार । दास आपके नाम का , नमन करूं हर बार ।

गणपति वन्दना - GANPATI VANDNA

  (1) गणपति वन्दना भजो मन गणपति देव गुंसाई । गणपति सुमर सदा सुख पावे , क्लेश जहाँ थक जाई ।।टेर।। अष्ट सिद्धि और नौ निधि भी , सदा चरण के मांई । ज्ञान बुद्धि का खुले भण्डारा , सकल पदारथ पाई ।।1।। गण इन्द्रियों के ईश गणेशा , आवागमन में नांई । घट घट के है अन्तर्यामी , दृष्टि में नहीं आई ।।2।। आपहूँ आप और नहीं दूजा , स्थिर रहे सदाई । तीन काल में रहे अखण्डित , ज्योति में ज्योति समाई ।।3।। “ ज्ञानस्वरूपजी ”  सतगुरू मिलिया , गणपति रूप लिखाई । “ अशोकराम ”  निज मन्दिर मांही , गणपति देव मनाई ।।4।।

कुण्डलियाँ (श्री गणपति को सुमरि के) - SHREE GANPATI KO SUMARI KE

कुण्डलियाँ श्री गणपति को सुमरि के , सतगुरू लेई मनाई । तीन लोक के है धणी , सहजां काज बनाई ।। सहजां काज बनाई , खोलते भरम किवारी । घट में ज्योति जलाई , मेटते सब अंधियारी ।। गणनायक गुरूदेव जी , सुमरूं घट के मांई । श्री गणपति को सुमरि के , सतगुरू लेई मनाई ।।

वन्दना के दोहे - VANDANA KE DOHE

वन्दना के दोहे नमो नमो गुरूदेवजी , नमो नमो भगवन्त । तन , मन , धन अर्पण करूं , करो दुःखो का अन्त ।।1।। आदि पुरूष परमात्मा , तुम्हे नवांऊ शीश । जनम धार बिसरूं नही , वन्दन बिश्वाबीस ।।2।। मुझ मुरख अज्ञान की , स्वामी करो सहाय । अन्तर परदा खोल दो , देवो ज्योति जलाय ।।3।। मुझ अज्ञानी दास के , घट में करो प्रकाश । करो दया शरणै रखो , सदा चरण के पास ।।4।। कोटि नाम है आपके , आपहि मायर बाप । पलक घड़ी बिसरूं नही , जपूं आपको जाप ।।5।। मम आशा पूरी करो , सत्य गुरू भगवान । नाद पुत्र हूँ आपका  ,  देवो ज्ञान का दान ।।6।। “ ज्ञानस्वरूप ”  गुरूदेव जी , तुमको प्रथम मनांऊ । “ अशोकराम ”  ने तारल्यो , चरणन शीश चढांऊ ।।7।।    

गुरू चालिसा - GURU CHALISA

  गुरू चालिसा गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णो ,  गुरूर्देवो महेश्वरः । गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मैश्री गुरूवे नमः ।। ध्यान मूलं गुरूमूर्ति ,  पूजा मूलं गुरूर्पदम । मंत्र मूलं गुरूर्वाक्यं ,  मोक्ष मूलं गुरूः कृपा ।। जय जय सतगुरू देव निरंजन ।   करो सदा सबका दुःख भन्जन ।।1।। गुरू सम तीन लोक में नांही । करत शिष्य पर कृपा सदाहीं ।।2।। गुरू बिन मोक्ष कभी न होवे । जीव हमेशा दुःख पा रोवे ।।3।। त्रिगुण रूप बैठे जग मांही । जड़ चेतन में आप समाही ।।4।। मेटो बन्धन करो प्रकाशा । ब्रह्म ज्ञान की करते आशा ।।5।। सुमरण करूं आप समझाओ । मेरे घट में राम लिखाओ ।।6।। गुरू का सुमरण जो नर करता । फिर चौरासी दुःख नहीं भरता ।।7।। गुरू    का    ध्यान    करे जो    कोई । बहुरि जन्म मिलता नहीं सोई ।।8।। गुरू चरण बहे अमृत गंगा । पीकर होई सर्वजन चंगा ।।9।। वेद शास्त्र सब करत बखाना । सतगुरू है पूरण भगवाना ।।10।। सूरज सम गुरू देव पधारे । रजनी तम मेटे अंधियारे ।।11।। लौहा रूप शिष्य को जानो । सतगुरू पारस सम पहिचानो ।।12।। लौहा भाव मिटावे पल में । कंचन पलट करत है ...

अशोकरामजी महाराज का ग्राम परिचय

ग्राम परिचय शिवाड़ नगर में शिव बसे , घुश्मेश्वर है धाम । द्वादश ज्योतिर्लिंग में , यांको नाम महान ।। यांको नाम महान , दर्शन करो नर नारी । सर्व घटों में–चमक रही , शिव की ज्योति उजियारी ।। सत्यम शिवम सुन्दरम , पूरण ब्रह्म पिछाण । ‘ अशोकराम ’  तुम देखलो , शिव है आतम राम ।।  

श्री अशोकराम जी महाराज का संक्षिप्त परिचय

  श्री अशोकराम जी महाराज का संक्षिप्त परिचय जन्म 14 जून , 1971 पिता है जगदीश जी , माता कस्तूरी जाण । तीन बन्धु गण मैरे , गोत्तम , पूरण , भगवान ।। त्रिया है देवी सन्तरा , दो पुत्र इक पुत्री सन्तान । निराला मंम वंश है , चौबदार जाति मान ।। “ ज्ञानस्वरूप ”  गुरूदेवजी , मिल गये सन्त महान । “ अशोकराम ”  शरणो लियो , जन्म है शिवाड़ ग्राम ।।  

ब्रह्मवेत्ता सतगुरूदेव स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप जी महाराज का संक्षिप्त परिचय

  ब्रह्मवेत्ता सतगुरूदेव स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप जी महाराज का संक्षिप्त परिचय खिड़गी मण्डाल्या बीच में , बहता गंगा नीर । “ ज्ञानस्वरूप ”  गुरूदेवजी , खड़े है गंगा तीर ।। खड़े है गंगा तीर , जहाज इक लेकर भारी । पल में पार लगावसी , जो बैठे नर नारी ।। “ अशोकराम ”  भी बैठया , उतरया पैली तीर । खिड़गी मण्डाल्या बीच में , बहता गंगा नीर ।  

निरंजनी सम्प्रदाय (हरिपुरूषजी से अशोकरामजी तक)

श्री हरि पुरूष  ‘ परब्रह्मनमो ’  ,  ‘ जसीराम ’  जगदीश । ‘ हरलालरामजी ’  प्रकट हुए ,  ‘ दुर्गारामजी ’  ईश ।। ‘ दुर्गारामजी ’  ईश , हुए है बड़े ब्रह्मज्ञानी । ‘ ज्ञानस्वरूपजी ’  दे गये , मुझको अमर निशानी ।। ‘ अशोकराम ’  शरणो लियो , पूरण बिश्वाबीस । ‘ श्री हरि पुरूष ’  परब्रह्म नमो , जसीराम जगदीश ।।

दो शब्द

दो शब्द प्रिय सज्जनों ,     मनुष्य शरीर बड़ी मुश्किल से कई जन्मों के पुन्यों के प्रताप के बाद मिल पाता है और यह मिलने के बाद इसे अच्छे कर्म करके हमेशा के लिए सुन्दर बना लेवे , ताकि शरीर छोड़ने के बाद भी आने वाली पीढ़ियाँ इस शरीर के नाम का गुणगान इज्जत से करती रहें । ये शरीर कोई कपड़े की भाँति न समझें कि खरीद लिया और पहन लिया और फैंक दिया , ये तो (मनुष्य शरीर) केवल एक बार ही मिलता है इसलिए ऐसी करणी करो कि अपने परमानन्द निज स्वरूप (सतचित्त आनन्द) की प्राप्ति हो सके और जन्म – मरण के बन्धन से मुक्त हो सके ।       इस बन्धन से मुक्त होने का एक ही तरीका व साधन है आत्म – ज्ञान , (ब्रह्मज्ञान) और ये केवल गुरू भक्ति से ही मिल पाता है । गुरूदेव की शरण में जाने के बाद ही , भक्ति का दान मिलता है और भक्ति से शुद्ध स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है , संसार में जितने भी संत हुए है । सभी ने यही मार्ग अपनाया और सहज ही भव सागर से पार हो गये , इसमें (भक्ति) में , जाँति – पाँति , धर्म – सम्प्रदाय , ऊँच – नीच , वर्ण – भेद नहीं होता है । ये सभी के लिए है इसे कोई भी अप...

सत्य शब्द सार

   सत्य शब्द सार सन्त आये द्वार तो , सम्मान करके देख । गुरूदेव के चरणों में सदा , ध्यान करके देख ।। चरण धोई अमृत का , तू पान करके देख । तन , मन , धन अर्पण , प्राण करके देख ।। माँग तू सतसंग , आतम ज्ञान करके देख । सद्ग्रंथ यही सीख देवे , जान करके देख ।। तिरना है भंवर जाल से , वचन मान करके देख । सतसंग रूपी सिंधु में , स्नान करके देख ।। पाना है अगर स्वर्ग तो , धन दान करके देख । भोगना है अगर नर्क तो , अभिमान करके देख ।। चाहता है मोक्ष तो , ब्रह्म ज्ञान करके देख । “ अशोकराम ”  गुरू हरि का , गुण–गान करके देख ।। **  हरि ओ S म तत् सत्  **

निरंजनी सम्प्रदाय

  ग्रंथ का नाम – परम ज्ञान प्रकाश ग्रंथ रचयिता – श्री अशोकराम जी महाराज आश्रम – शिवाड़ , (जिला – सवाई माधोपुर , राजस्थान )   निरंजनी सम्प्रदाय महापुरूषों के नाम स्थान                              –                             आश्रम 1.       सन्त श्री हरिपुरूषजी महाराज                          –                      डीडवाना – नागौर 2.       सन्त श्री जसीरामजी महाराज                    ...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

परम ज्ञान प्रकाश WRITING

निरंजनी सम्प्रदाय (हरिपुरूषजी से अशोकरामजी तक)

हरि जी म्हारी सुणज्यो बैग पुकार (भजन) - HARI JI MHARI SUNJYO BAIG PUKAR