दो शब्द
प्रिय सज्जनों ,
मनुष्य शरीर बड़ी मुश्किल से कई जन्मों के पुन्यों के प्रताप के बाद मिल पाता है और यह मिलने के बाद इसे अच्छे कर्म करके हमेशा के लिए सुन्दर बना लेवे , ताकि शरीर छोड़ने के बाद भी आने वाली पीढ़ियाँ इस शरीर के नाम का गुणगान इज्जत से करती रहें । ये शरीर कोई कपड़े की भाँति न समझें कि खरीद लिया और पहन लिया और फैंक दिया , ये तो (मनुष्य शरीर) केवल एक बार ही मिलता है इसलिए ऐसी करणी करो कि अपने परमानन्द निज स्वरूप (सतचित्त आनन्द) की प्राप्ति हो सके और जन्म – मरण के बन्धन से मुक्त हो सके ।
इस बन्धन से मुक्त होने का एक ही तरीका व साधन है आत्म – ज्ञान , (ब्रह्मज्ञान) और ये केवल गुरू भक्ति से ही मिल पाता है । गुरूदेव की शरण में जाने के बाद ही , भक्ति का दान मिलता है और भक्ति से शुद्ध स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है , संसार में जितने भी संत हुए है । सभी ने यही मार्ग अपनाया और सहज ही भव सागर से पार हो गये , इसमें (भक्ति) में , जाँति – पाँति , धर्म – सम्प्रदाय , ऊँच – नीच , वर्ण – भेद नहीं होता है । ये सभी के लिए है इसे कोई भी अपना सकता है । इसको छोटा – बड़ा नर – नारी , गृहस्थ – सन्यासी सभी अपना सकते है – क्योंकि परमात्मा सर्वत्र है –
परम संत रैदासजी ने कहा है कि –
जाँत पाँत पूछे नही कोई ।
हरि को भजे सो हरि का होई ।।
इस कारण इस ग्रन्थ को हमने समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए परमात्मा गुरूदेव की असीम कृपा से तैयार किया है , ताकि सभी वर्ण , सम्प्रदाय , जाति , धर्मों के जिज्ञासु जन इसे पढ़कर परमार्थ से जुड़ें और ब्रह्म ज्ञान को इस जग में फैलाते रहे । मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है ।
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